यूं तो साहित्य जगत में कोई भी ऐसा नहीं रहा होगा जो सुभद्रा कुमारी चौहान की कलम से परिचित नहीं हो, लेकिन उनकी एक रचना जिसने उन्हें सबकी जुबां पर ला दिया "बुंदेले हरबोलों की हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी" इसको कविता का रुतबा कुछ इस तरह रहा कि आप इसकी कोई एक लाइन बोल दे तो सामने वाला उसकी पूरी लाइन बोल देगा। यह कविता एक बिरंगाना का जीवन परिचय है। झांसी की रानी लक्ष्मी बाई का जीवन परिचय जो अपने राज्य की रक्षा के लिए अकेले युद्ध भूमि में अंग्रेजों के सामने कूद पड़ी और डटकर मुकाबला किया यह रचना इसी वीरांगना की गाथा है। जीत और वीरता में यही तो फर्क है, जीत सिर्फ प्राप्त करने पर मिलती है जिसमें कई बड़े कारण होते हैं लेकिन वीरता तो वह गुण होता है जो परिणाम के पहले और परिणाम के बाद तक चमकता रहता है और जिस तरह सुभद्रा कुमारी चौहान ने उनकी वीरता को शब्द में उतारा है। अद्वितीय है जो जोश भर देता है देश प्रेम की भावना पूरे हृदय में उमड़ने लगती है और आज यही रचना में पढ़ना चाहूंगा/चाहूंगी।
"खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी"
सिंहासन हिल उठे राजवंशों की वृकुटी तनी थी
बूढ़े भारत में आई फिर से नई जवानी थी
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी
चमक उठी सन 57 में वह तलवार पुरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
कानपुर के नाना की मुंहबोली बहन छबीली थी
लक्ष्मीबाई नाम पिता की वह संतान अकेली थी
नाना के संग पढ़ती थी वह नाना के संग खेली थी
बरसी ढाल कृपाण कटारी उसकी यही सहेली थी
वीर शिवाजी की गाथाएं उसकी याद जवानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार
देख मराठे पुलकित होते उनकी तलवारों के वार
नकली युद्ध व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार
सैन्य घेरना दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़
महाराष्ट्र कुलदेवी उनकी भी आराध्य भवानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।
जय हिंद जय भारत हिंदुस्तान जिंदाबाद।