* वर्ष 1922 में चौरी चौरा हत्याकांड के बाद गांधी जी ने जब किसानों का साथ नहीं दिया। तब भगत सिंह बहुत निराश हुए। उसके बाद उनका अहिंसा से विश्वास कमजोर हो गया और वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सशस्त्र क्रांति ही स्वतंत्रता दिलाने का एकमात्र रास्ता है। उसके बाद वह चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में गठित हुई गदर दल के हिस्सा बन गए।
(चौरी चौरा उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के पास एक कस्बा है जहां 4 फरवरी उन्नीस सौ 22 को लगभग 2000 से ढाई हजार प्रदर्शनकारी असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए एकत्र हुए जहां भीड़ नियंत्रण करने के लिए आईं पुलिस के साथ हिंसक झड़प हुई। जिसमें 3 प्रदर्शनकारी मारे गए और कई अन्य घायल हो गए। जवाबी कार्रवाई में भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार की हिंसक कार्रवाई के बदले पुलिस स्टेशन में आग लगा दी इससे उस में छुपे हुए 22 पुलिस कर्मचारी जिंदा जलकर मर गए इस घटना को चौरी-चौरा कांड के नाम से जाना जाता है)
* काकोरी कांड में राम प्रसाद बिस्मिल सहित चार क्रांतिकारियों को फांसी और 16 अन्य को कारावास की सजा से भगत सिंह इतने अधिक उग्र हुए कि चंद्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए और उससे एक नया नाम दिया हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन। इस संगठन का उद्देश्य सेवा, त्याग और पीड़ा झेल सकने वाले नवयुवक तैयार करना था।
(भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों द्वारा ब्रिटिश राज के विरोध में भयंकर युद्ध छेड़ने की इच्छा से हथियार खरीदने के लिए ब्रिटिश सरकार का ही खजाना काकोरी स्टेशन के समीप रेलगाड़ी को रोककर लूटने की घटना जो 9 अगस्त 1925 को हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह आदि समेत 10 मुख्य और कई अन्य सदस्यों द्वारा अंजाम दिया गया था।)
* भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक अंग्रेज अधिकारी जे पी संडार्स को मारा था। इस करवाई में क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने उनकी पूरी सहायता की थी।
(सेंट्रल असेंबली बम कांड की घटना जो लाहौर षड्यंत्र केस के नाम से मुकदमा चला। बम कांड का उद्देश्य किसी को हानि पहुंचाना नहीं था। इसलिए बम असेंबली में खाली स्थान पर फेंका गया और बम फेंकने के बाद वहां से भागे नहीं, स्वेच्छा से अपनी गिरफ्तारी दी। इस दौरान वहां इन्होंने पर्चे भी बांटे जिसका प्रथम वाक्य था - "बहारों को सुनने के लिए विस्फोट के बहुत ऊंचे शब्द की आवश्यकता होती है")
* क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने वर्तमान नई दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्काल सेंट्रल असेंबली के सभागार संसद भवन में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज सरकार को जाने के लिए बम और पर्चे फेंके थे बम फेंकने के बाद वहीं पर दोनों ने अपनी गिरफ्तारी भी दी। कुछ सुराग मिलने के बाद लाहौर षड्यंत्र केस के नाम से मुकदमा चला 7 अक्टूबर 1930 को फैसला सुनाया गया जिसके अनुसार राजगुरु सुखदेव और भगत सिंह को फांसी की सजा दी गई। 23 मार्च 1931 की रात को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर लटका दिया गया।