हिन्दी व्याकरण Hindi grammar:
भाषा:
भाषा वह संसाधन है जिसके माध्यम से मनुष्य अपने मन के भावों तथा विचारों को प्रकट करता है।
मनुष्य के भावों एवं विचारों को प्रकट करने के दो माध्यम है।,
मौखिक एवं लिखित
* जब मन के विचारों को बोलकर प्रकट किए जाएं तो, उससे मौखिक भाषा कहते हैं।
* जब मन के विचारों को लिखकर प्रकट किया जाए तो, उसे लिखित भाषा कहते हैं।
* अपनी मां तथा परिवार से जो भाषा सीखी जाए, उसे मातृभाषा कहते है।
प्रत्येक भाषा में लिखने के चिन्ह को लिपि कहते है।
हिंदी भाषा में लिखे के चिन्ह को देवनागरी लिपि कहते है।
* "व्याकरण वह शास्त्र है जिसके पढ़ने से मनुष्य स्पष्ट रूप से लिखना, पढ़ना और बोलना सीखता है।"
हिन्दी व्याकरण के मुख्यतः तीन भेद हैं :
1. वर्ण-विचार ।
वर्ण विचार व्याकरण का वह भाग है जिसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार के वर्णों का अध्ययन किया जाता है।
2. शब्द-विचार ।
शब्द विचार व्याकरण का वह भाग है जिसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार के शब्दों का अध्ययन किया जाता है।
3. वाक्य-विचार।
वाक्य विचार व्याकरण का वह भाग है जिसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार के वाक्यों का अध्ययन किया जाता है।
1. वर्ण-विचार ।
वर्णों के समूह को वर्णमाला कहते हैं।
हिंदी वर्णमाला में कुल 11 + 33 + 4 + 2 + 2 = 52 वर्ण होते हैं।
स्वर वर्ण -11, व्यंजन वर्ण - 33
{स्पर्श व्यंजन 25 + अंत:स्थ व्यंजन - 4 (य, र, ल, व) + ऊष्म व्यंजन - 4 (श, ष, स, ह)}
संयुक्ता व्यंजन - क्ष, त्र, ज्ञ, श्र =4,
अयोगवाह- अं और अः = 2,
आधुनिक हिंदी में - ड़, ढ़ = 2
वर्णों के दो भेद हैं
(क). स्वर वर्ण
(ख). व्यंजन वर्ण
स्वर वर्ण के तीन भेद होते हैं- ह्रस्व, दीर्घ, प्लुत।
व्यंजन वर्ण के तीन भेद होते हैं- स्पर्श, अंत:स्थ, ऊष्म।
(क). स्वर वर्ण
स्वर वर्ण :- जिन वर्णों का उच्चारण स्वयं हो यानी दूसरे वर्ण की सहायता न लेनी पड़े, उस वर्ण को स्वर कहते हैं।
जैसे :- अ,आ,इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ
स्वर वर्ण कुल 11होते हैं
उच्चारण के विचार से स्वर के तीन भेद होते हैं।
1.ह्रस्व स्वर :- जिन स्वरों के उच्चारण में एक मात्रा का समय लगे, उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं।
जैसे :- अ, इ, उ, ऋ ।
2. दीर्घ स्वर :- जिन स्वरों के उच्चारण में दो मात्राओं का समय लगे, उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं।
जैसे:- आ, ई, ऊ।
(दीर्घ स्वरों का उच्चारण ह्रस्व की अपेक्षा लंबा और
ऊंचा होता है।)
3. प्लुत स्वर :- जिन स्वरों के उच्चारण में तीन मात्राओं का समय लगे, उसे प्लुत स्वर कहा जाता है।
जैसे :- हे राम, ॐ ।
(इनका प्रयोग प्रायः पुकारने या चिल्लाने में होता है)
स्वर के प्रतिनिधि रूप को मात्रा कहते हैं।
आ =ा , इ = ि, ई =ी, उ =ु , ऊ=ू ऋ=ृ , ए=े , ऐ=ै , ओ=ो, औ=ौ, अं=ं , अ:=:
स्वरों की मात्राएँ
'अ' स्वर को छोड़कर सभी स्वरों की मात्राएँ होती हैं। जब व्यंजनों के साथ स्वरों को मिलाकर लिखा जाता है तब स्वरों के मात्रा रूप का प्रयोग किया जाता है।
स्वर = मात्रा मात्रा का व्यंजन के साथ प्रयोग
अ - क् + अ = कलम
आ =ा क् + आ = काजल
इ = ि क् + इ = किताब
ई =ी, क् + ई = कीमत
उ =ु क् + उ = कुछ
ऊ=ू क् + ऊ = कूद
ऋ=ृ क् + ॠ = कृष्ण
ए=ेे क् + ए = केला
ऐ=ैै क् + ए = कैसा
ओ=ो क् + ओ= कोयला
औ=ौ क् + औ= कौन
(ख). व्यंजन वर्ण :
व्यंजन वर्ण: जिन वर्णों का उच्चारण स्वर वर्ण की सहायता से हो उससे व्यंजन वर्ण कहते हैं।
उच्चारण के विचार से व्यंजन वर्ण के तीन भेद होते हैं- स्पर्श, अंत:स्थ, ऊष्म।
स्पर्श वर्ण: जिन व्यंजन वर्णों के उच्चारण में जीभ या मुख के किसी न किसी भाग को स्पर्श करें उन्हें स्पर्श व्यंजन वर्ण कहते हैं ।
क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग, प वर्ग स्पर्श वर्ण कुल 25 है।
अंत:स्थ वर्ण: जिन व्यंजन वर्णों के उच्चारण में जीभ का पूरी तरह से मुख के किसी भी भाग से स्पर्श नहीं हो, उसे अंतस्थ व्यंजन कहते हैं।
य, र, ल और व अंत:स्थ वर्ण कुल 4 है।
ऊष्म वर्ण: जिन व्यंजन वर्णों के उच्चारण में मुख से गरम श्वास निकले, उसे ऊष्म व्यंजन कहते हैं।
श, ष, स और ह ऊष्म वर्ण कुल 4 है।
संयुक्त व्यंजन: एक से अधिक व्यंजनों के मेल से बने व्यंजनों को संयुक्त व्यंजन कहते हैं।
क्ष, त्र, ज्ञ और श्र संयुक्त व्यंजन कुल 4 है।
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2. शब्द-विचार
* व्याकरण के जिस भाग में शब्दों के भेद, अवस्था और व्युत्पत्ति का वर्णन हो, उसे शब्द-विचार कहा जाता है।
* शब्द: वर्णों और मात्राओं के मेल से बनते हैं।
* वर्णों के मेल से बने सार्थक वर्ण समूह को शब्द कहते हैं।
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* शब्दों के आधार एवं वर्गीकरण *
(Base and classification of words)
* शब्द की रचना प्रायः चार प्रकार से होती है।
1. अर्थ की दृष्टि से,
2. व्युत्पत्ति (रचना) की दृष्टि से,
3. उत्पत्ति की दृष्टि से,
4. प्रयोग की दृष्टि से ।
1. अर्थ की दृष्टि से,
From the point of view of meaning
[1]अर्थ की दृष्टि से शब्दों के दो भेद होते हैं
[There are two types of words in terms of meaning.]
1. सार्थक
2. निरर्थक
1) सार्थक शब्द:- वह शब्द जिसका स्वयं कुछ अर्थ हो, उन्हें सार्थक शब्द कहते है।
जैसे--माता, पिता, विद्या, भाई, छात्र, शरीर आदि।
2) निरर्थक शब्द:- वह शब्द जिसका कोई अर्थ नहीं होता, उन्हें निरर्थक शब्द कहते है। जैसे-नप,मट,लप,तफ आदि।
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2. व्युत्पत्ति (रचना) की दृष्टि से,
From the point of view of etymology,
[2] व्युत्पत्ति (रचना) की दृष्टि से शब्दों के तीन भेद होते हैं।
1. रूढ़,.
2. यौगिक.
3. योगरूढ़ ।
1) रूढ़:- जिस शब्द के कोई खण्ड सार्थक न हो, उसे 'रूढ़-शब्द' कहते है।
जैसे—'रट' शब्द है। इसका खण्ड 'र' और 'ट' का अलग-अलग कोई अर्थ नहीं है, अतः यह रूढ़ शब्द है। इसी तरह नाक,कान,पीला आदि रूढ़ शब्द हैं।
2) यौगिक:- जिस शब्दों के सभी खण्ड सार्थक हो, उसे 'यौगिक शब्द' कहते है। जैसे- 'घरवाला' शब्द है। 'घर' और 'वाला' इसके दो खण्ड हैं। दोनों खण्डों का अर्थ है, अतः यह शब्द यौगिक है।
3) योगरूढ़:- जो शब्द अपने सामान्य अर्थ को छोड़कर विशेष अर्थ पैदा करते हो, उसे 'योगरूढ़ शब्द' कहते हैं।
जैसे- पंकज, जलज, लंबोदर चक्रपाणि आदि।
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3. उत्पत्ति की दृष्टि से,
(From the point of view of origin,)
उत्पत्ति की दृष्टि से शब्दों के चार भेद होते हैं।
[ There are four distinctions of words from the point of view of origin.]
1.तत्सम
2. तद्भव.
3. देशज.
4. विदेशज।
1) तत्सम:- संस्कृत के मूल शब्द जो ठीक उसी रूप में हिन्दी में प्रयुक्त होते हैं । उसे तत्सम शब्द कहते है। जैसे- वृक्ष,पंक, ग्राम, चन्द्र,पंच, पशुर,अश्रु, रात्रि, अग्नि, मयूर, नव, मध्य आदि।
2) तद्भव:- संस्कृत के वे शब्द जो रूपान्तरित होकर हिन्दी में मिला हैं। ऐसे विकृत संस्कृत और प्राकृत शब्दों को तद्भव कहा जाता है। जैसे—हाथ, दूध, आग, नौ, चार, पीला, शाम, ऊँट,बाघ, भालू, सियार, सूखा, पीपर, दही, घी, सूरज आदि।
3) देशज : जो शब्द देश के अन्दर बोल-चाल की भाषा से लिये गये हैं, देशज कहा जाता है। जैसे-चिड़िया, जूता, तेन्दुआ, कलई, पगड़ी आदि।
4) विदेशज : जो शब्द विदेशी भाषाओं से हिन्दी में मिल गये हैं, उन्हें विदेशज कह जाता है। जैसे-स्कूल, टेबुल, लैम्प, माइल, टिकट, स्टेशन, अफसोस, यादगार, रंग, रोगन, अदा, अजब, अमीर, गरीब, गैरत, दुकान, बाल्टी,किरानी, किताब, कलम, लीची, आलमारी आदि ।
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4. प्रयोग की दृष्टि से ।
(From the point of view of experiment.)
प्रयोग (व्यवहार)की दृष्टि से शब्दों के आठ भेद होते हैं।
There are eight types of words in terms of usage (behavior).
1. संज्ञा Noun
2. सर्वनाम Pronoun
3. विशेषण Adjective
4. क्रिया. Verb
5. क्रिया-विशेषण, AdVerb
6. संबंधबोधक,. Preposition
7. समुच्चयबोधक Conjunction
8. विस्मयादिबोधक. Interjection
1) संज्ञा:- किसी व्यक्ति, वस्तु या स्थान के नाम को संज्ञा कहा जाता है। जैसे—राम, सीता, कृष्ण, घर, गाय, घोड़ा, जमीन आदि।
2) सर्वनाम:- जिस शब्द का प्रयोग संज्ञा के बदले में होता है, उसे सर्वनाम कहते है। जैसे-मैं, हम, तुम, वह, वे, आप आदि।
3) विशेषण:- जो शब्द संज्ञा एवं सर्वनाम की विशेषता बताते हैं, उन्हें विशेषण कहा जाता है। जैसे-लाल, काला, पीला, अच्छा, बुरा आदि।
4) क्रिया:- जिन शब्दों से करना या होना समझा जाय, उन्हें क्रिया कहते हैं। जैसे-खाता है, सोना है, पढ़ता है, जाता है, आता है आदि।
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5) क्रिया-विशेषण:- जिन शब्दों से क्रिया की विशेषता का बोध होता है उन्हें क्रियाविशेषण कहते हैं। जैस - वह धीरे-धीरे चलता है। इस वाक्य में 'चलता' क्रिया है और 'धीरे-धीरे' उसकी विशेषता बता रहा है। अतः 'धीरे-धीरे' क्रियाविशेषण है।
6) संबंधबोधक:- जो शब्द संंज्ञा या सर्वनाम का संबंध वाक्य के अन्य शब्दों के साथ बताते हैं उन्हें संबंधबोधक कहते हैं।
जैस:- तुम्हारे घर के पीछे बगीचा है। राधा ठंड के मारे कांप रही है। हमारे घर के सामने विद्यालय है। पुल के ऊपर ट्रक जा रहा था।
इन वाक्यों में ‘के पीछे’, ‘के मारे’, ‘के ऊपर’ तथा ‘के सामने’ का संबंध क्रमश: ‘बगीचा’, ‘ठंड’, ‘ट्रक’ तथा ‘विद्यालय’ शब्दों का संबंध पूरे वाक्य से जोड़ रहे हैं, अत: ये शब्द संबंधबोधक अव्यय हैं।
7) समुच्चयबोधक :- जो शब्द दो या दो से अधिक शब्द, वाक्य या वाक्यांशों को जोड़ने का काम करता हैं, उन्हें समुच्चयबोधक शब्द कहते हैं।
मदन ने कड़ी मेहनत की और सफल हुआ।
किरण बहुत तेज़ दौड़ी लेकिन प्रथम नहीं आ सकी।
इन वाक्यों में और, लेकिन, शब्द दो वाक्यांशों को जोड़ने का काम कर रहे हैं। अंत: ये शब्द समुच्चयबोधक हैं।
8) विस्मयादिबोधक:- जो शब्द वाक्य में आश्चर्य, हर्ष, शोक, घृणा आदि भाव व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त हों, वे विस्मयादिबोधक कहलाते हैं। ऐसे शब्दों के साथ विस्मयादिबोधक चिन्ह (!) का प्रयोग किया जाता है। जैसे: अरे!, ओह!, शाबाश!, काश! आदि।
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इन उपर्युक्त आठ प्रकार के शब्दों को भी विकार की दृष्टि से दो भागों में बाँटा जा सकता है-
1. विकारी
2. अविकारी
1. विकारी शब्द : जिन शब्दों का रूप-परिवर्तन होता रहता है वे विकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे-कुत्ता, कुत्ते, कुत्तों, मैं मुझे, हमें अच्छा, अच्छे खाता है, खाती है, खाते हैं।
इनमें संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया विकारी शब्द हैं।
2. अविकारी शब्द : जिन शब्दों के रूप में कभी कोई परिवर्तन नहीं होता है वे अविकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे-यहाँ, किन्तु, नित्य और, हे अरे आदि। इनमें क्रिया-विशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक और विस्मयादिबोधक आदि हैं।
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