गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद अंग्रेजों के शोषण और अन्याय से कराह रहे दीन-हीन देशवासियों के जीवन को निकट से देखने के लिए संपूर्ण देश का दौरा किया। जिसके कारण भारतीयों के दयनीय दशा को देखकर उनका करुण ह्रदय रो उठा और वे वकालत छोड़ कर अपने जीवन का रूख स्वतंत्रता संग्राम की ओर मोड़ दिया।
उस समय उन्होंने अनुभव किया कि भारतीय समाज को गुलामी के साथ-साथ जात-पात, ऊंच-नीच और छुआछूत से ग्रसित अनेक बुराइयों को भी झेलना पड़ रहा है। हिंदू और मुसलमानों के बीच की गहरी खाई , महिलाओं की दशा, पिछड़े वर्ग के उत्थान जैसी अवस्था की ओर भी ध्यान देना होगा। विदेशी शासकों के साथ-साथ उन्हें सामाजिक कुरीतियों से भी लड़ना होगा।
1920 ई० में गांधी जी ने असहयोग आंदोलन कर विभिन्न सरकारी क्षेत्रों में सरकार का सहयोग न करने का आह्वान किया। जिसमें देश की जनता ने तन-मन से गांधी जी का साथ दे कर न्यायाल, विधानसभा और शिक्षण संस्थानों का बहिष्कार किया। सरकारी नौकरियां और उपाधियां त्याग कर सरकार का कार्य ठप कर दिया गया। सरकार सन्न रह गई। जिसके कारण गांधीजी को कैद कर 6 वर्ष की सजा दे दी।
26 जनवरी 1930 ई० को गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ किया। इसका उद्देश्य विनय पूर्वक सरकार के कानूनों की अवहेलना करना था।
22 मार्च 1930 को गांधी जी ने दांडी यात्रा की और नमक कानून को तोड़ कर देश की सोई हुई जनता को जगाया।जगह-जगह नमक बनवाया गया और महिलाओं ने विदेशी वस्त्र बेचने वालों की दुकानों पर धरने दिए। आंदोलन को प्रभावशाली होते देखे गांधीजी सहित सभी नेता गिरफ्तार कर लिए गए।
7 सितंबर 1931 गांधीजी गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने इंग्लैंड चले गए और परिणाम स्वरूप 'गांधी इरविन' समझौता संपन्न हुआ।
8 अगस्त 1942 ई० को कांग्रेस ने गांधी जी के नेतृत्व में अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन छेड़ दिया। इस आंदोलन को प्रभावी बनाने के लिए गांधीजी ने जनता को "करो या मरो" का नारा दिया। इस आंदोलन की सफलता से घबराकर अंग्रेजों ने गांधी जी एवं अन्य नेताओं को बंदी बना लिया। सरकार द्वारा यह आंदोलन कठोरता से कुचल दिया गया। भारत की जनता ने पूरे जोश के साथ सरकार के विरुद्ध अपना संघर्ष जारी रखा।
अंग्रेज गांधी जी के सत्य और अहिंसा के आंदोलन से घबरा गए और उन्हें विश्वास हो गया कि अब इस राष्ट्र की जनता का अधिक दिनों तक शोषण करना संभव नहीं होगा। इस प्रकार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रयासों से भारत को 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश शासन से मुक्ति मिल गई।
महात्मा गांधी के त्याग और बलिदान के कारण भारतीयों ने उन्हें राष्ट्रपिता की उपाधि से विभूषित किया। वास्तव में इस संत ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
* 1915 ई० में गांधीजी ने स्वतंत्रता संग्राम की बागडोर संभाल ली और 1947 ई० तक वे इस संघर्ष के जननायक बने रहे।
* उन्होंने हिंदू मुस्लिम एकता पर बल दिया। हरिजन उद्धार कार्यक्रम चलाकर उन्होंने अछूतों को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ दिया।
महात्मा गांधी - अमर रहे।
महात्मा गांधी - अमर रहे।
महात्मा गांधी - अमर रहे।