भाषा हमारे विचारों को प्रकट करने का सबसे सरल साधन है।
भाषा से हम अपनी बात दूसरों को बता सकते हैं।
भाषा से हम दूसरों की बात समझ सकते हैं।
भाषा को व्यक्त करने के तीन माध्यम है।
*बोल कर *लिख कर *संकेत द्वारा
भाषा के दो रूप होते हैं।
*मौखिक भाषा *लिखित भाषा
भाषा की मूल ध्वनि के प्रतीक चिह्न को वर्ण कहा जाता है।
(वर्ण वह मूल ध्वनि है जिसका खण्ड या टुकड़ा नहीं किया जा सकता।)
वर्ण को अक्षर भी कहा जाता है।
वर्णों के समूह को वर्णमाला कहते हैं।
वर्णों के दो भेद हैं
स्वर वर्ण और व्यंजन वर्ण।
स्वर वर्ण: जिस वर्ण का उच्चारण स्वयं हो यानी दूसरे वर्ण की सहायता ना लेनी पड़े, उसे स्वर वर्ण कहते हैं।
जैसे:अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ
उच्चारण के विचार से स्वर के तीन भेद होते हैं।
*ह्रस्व: जिन स्वर वर्णों के उच्चारण में एक मात्रा का समय लगे, उसे ह्रस्व कहते हैं।
*दीर्घ: जिन स्वर वर्णों के उच्चारण में दो मात्राओं का समय लगे, उसे दीर्घ स्वर कहते हैं।
*प्लुत: जिन स्वर वर्णों के उच्चारण में तीन मात्राओं का समय लगे, उसे प्लुत स्वर कहते हैं।
मात्रा: स्वर वर्ण के प्रतिनिधि रूप जिससे व्यंजन वर्णों की सहायता हो पाती है, उससे मात्रा कहते हैं।
व्यंजन वर्ण: जिस वर्ण का उच्चारण स्वर की सहायता से हो,उसे व्यंजन वर्ण कहते हैं।
जैसे:
'क' वर्ग- क, ख, ग, घ, ङ।
'च' वर्ग- च, छ, ज, झ, ञ।
'ट' वर्ग- ट, ठ, ड, ढ, ण।
'त' वर्ग- त, थ, द, ध, न।
'प' वर्ग- प, फ, ब, भ, म।
अन्त:स्थ वर्ण- य, र, ल, व।
ऊष्म वर्ण- श, ष, स, ह।
संयुक्त व्यंजन वर्ण- क्ष, त्र, ज्ञ, श्र।
नये गृहीत व्यंजन - ड़ और ढ़़।
अयोगवाह- अं और अ:।
वर्णों का उच्चारण स्थान :-
वर्ण का नाम - वर्ण - उच्चारण -स्थान।
कण्ठ्य - अ, आ, क वर्ग, ह और विसर्ग - कण्ठ से।
तालव्य - इ, ई, च वर्ग य, श - तालु से।
मूर्धन्य - ऋ, ट वर्ग, ष - मूर्धा से।
दन्त्य - लृ, तो वर्ग, ल, स - दन्त से।
ओष्ठ्य - उ, ऊ, प वर्ग - ओष्ठ से।
कण्ठतालव्य - ए, ऐ - कण्ठ-तालु से।
कण्ठोष्ठ्य - ओ, औ - कण्ठ-ओष्ठ से।
दन्तोष्ठ्य - व - दन्त-ओष्ठ से।
अनुनासिक - ङ, ञ, ण, न, म - नासिका से।